April 19, 2024

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब एक ऐसा कदम उठा लिया है, जैसा कदम उनके पहले तक कोई राष्ट्रपति नहीं उठा सका। उन्होंने येरुशलम को इस्राइल की राजधानी घोषित कर दिया है। अब अमेरिका दूतावास वहीं खुलेगा। स्वयं इस्राइल ने 1980 में अपनी राजधानी येरुशलम को घोषित कर दिया था। दर्जनों राष्ट्रों ने अपने दूतावास तेल अवीव में ही खोल रखे हैं। येरुशलम कोई नहीं गया, क्योंकि वह झगड़े की जड़ है। यह ठीक है कि 1967 के युद्ध में इस्राइल ने गाजा पट्टी, पश्चिमी तट और पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया था लेकिन इन स्थानों पर पहले से रहनेवाले फलिस्तीनी लोगों ने कभी भी अपना दावा नहीं छोड़ा है। वे इस इलाके की आजादी के लिए हमेशा आंदोलन करते रहे हैं। 1980 में सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित करके येरुशलम पर इस्राइली कब्जे को अवैध घोषित किया था। येरुशलम शहर इसलिए भी सबसे ज्यादा झगड़े की जड़ है कि इस शहर में दुनिया के तीन बड़े मजहबों के तीर्थ या पूजा-स्थल बने हुए हैं। यहूदी, ईसाई और मुस्लिम- तीनों यह मानते है कि यह शहर उनका है। यदि इस पर अकेले इस्राइल के कब्जे को कानूनी मान लिया जाए तो दुनिया के डेढ़ अरब मुसलमान और करोड़ों ईसाइयों को भयंकर एतराज़ होगा। इस्राइली कब्जे के पहले इसके पश्चिमी हिस्से पर जोर्डन और फलिस्तीनियों का अधिकार था। 1948 में संयुक्तराष्ट्र ने जो योजना पेश की थी, उसके मुताबिक अंग्रेज द्वारा खाली की गई जगह में इस्राइल और फलिस्तीन नामक दो राज्य बनने थे और येरुशलम को एक अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रहना था। लेकिन अब ट्रंप की इस घोषणा से इस्राइल-फलिस्तीन विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। लगभग दुनिया के सभी प्रमुख राष्ट्रों ने ट्रंप की भर्त्सना की है या उनसे असहमति जताई है। अभी तक एक भी राष्ट्र ने ट्रंप का समर्थन नहीं किया है। तो फिर ट्रंप ने ऐसी घोषणा क्यों की है ? इसीलिए कि उन्हें अपना चुनावी वादा पूरा करना था। इस घोषणा के कारण अब इस्राइल-फलिस्तीन विवाद में अमेरिका की मध्यस्थता खटाई में पड़ जाएगी। जो मुस्लिम राष्ट्र अमेरिका के मित्र हैं, उन्होंने भी ट्रंप की आलोचना की है। ट्रंप को चाहिए था कि वे हमारे नरेंद्र मोदी को अपना गुरु धारण करते। अपने चुनावी-वादे को जुमलेबाजी कहकर हवा में उड़ा देते। ट्रंप ने फिजूल ही एक नई मुसीबत अपने सिर ले ली है।