April 18, 2024

कांग्रेस ने कब्जाया सिंधिया का किला

मध्य प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव की तस्वीर साफ हो चुकी है और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मजबूत किले भी धराशायी हो गए हैं. पहले दौर में 11 नगर निगमों में चुनाव हुआ था जिनके नतीजे आ चुके हैं. इन 11 में से 7 नगर निगम के मेयर चुनाव में बीजेपी, 3 पर कांग्रेस और एक पर आम आदमी पार्टी को सफलता मिली है. नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे देखकर भले ही ऐसा लगे कि बीजेपी को बढ़त मिली है, लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी को नुकसान हुआ है. बीजेपी के कई दिग्गज अपना गढ़ भी नहीं बचा सके. सूबे में करीब एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में निकाय चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं तो कांग्रेस के लिए किसी सियासी संजीवनी से कम नहीं.

एमपी के 11 नगर निगमों में से बीजेपी ने इंदौर, भोपाल, बुरहानपुर, उज्जैन, सतना, खंडवा और सागर में जीत दर्ज की है. कांग्रेस ने ग्वालियर, जबलपुर और छिंदवाड़ा नगर निगम पर कब्जा जमाया है तो निकाय चुनाव में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी खाता खोलने में कामयाब रही. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भले ही एक भी मेयर सीट न जीत सकी हो, लेकिन कई सीटों पर कांग्रेस का गणित जरूर बिगाड़ दिया. दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों में पूरी तरह बीजेपी का कब्जा था और कांग्रेस का एक भी मेयर नहीं था. बीजेपी ने चार नगर निगम के मेयर की कुर्सी गंवा दी है. इस तरह निकाय चुनाव से पांच बड़े राजनीतिक संदेश निकले हैं.

बीजेपी का मजबूत किला दरका

पिछली बार हुए निकाय चुनाव में सभी 11 नगर निगमों में बीजेपी के मेयर चुने गए थे. इस बार उसे चार नगर निगमों में मेयर पद से हाथ धोना पड़ा है. इनमें ग्वालियर भी शामिल है जहां 57 साल के बाद बीजेपी को हार मिली है. इसी तरह जबलपुर में 23 साल बाद बीजेपी का मेयर नहीं होगा. ग्वालियर और जबलपुर बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ माने जाते हैं और यहां पार्टी को मिली हार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया और प्रभात झा के अलावा शिवराज सरकार के पांच मंत्री ग्वालियर इलाके से आते हैं. बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह जबलपुर से सांसद हैं तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की ससुराल जबलपुर में ही है. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां मिली हार निश्चित तौर पर चिंता बढ़ाने वाली है. शहरी वोटों पर बीजेपी की मजबूत पकड़ मानी जाती है, जिसके चलते उसकी हार ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं.