May 19, 2024

सियासी जादूगर अशोक गहलोत का जादू हुआ ‘फेल’, सचिन पायलट की लग सकती है लॉटरी?

जयपुर। राजस्थान कांग्रेस में पिछले 5 दिन में जो बवंडर आया अभी शांत होता नजर नहीं आ रहा। सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के बाद राजस्थान की राजनीति का जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत ने साफ कर दिया कि वे कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ रहे। हालांकि सोनिया से मुलाकात के बाद जब गहलोत बाहर आए तो उनके चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था। अब सवाल उठता है कि गहलोत का क्या होगा। क्या वे सोनिया गांधी को मना पाएंगे। उनकी सीएम की ‘प्यारी कुर्सी’ बचेगी या सचिन पायलट की लॉटरी लगेगी?
देखना होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए वोटिंग से पहले अभी कितने ट्विस्ट आते हैं, कितने सस्पेंस उभरते हैं। वैसे राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी आलाकमान भी फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। वो किसी को नाराज करना नहीं चाहता। ऐसे में इसकी संभावना कम ही लगती है कि वो अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से अभी के हालात में हटाना चाहेगा। वह किसी भी हालत में गहलोत और सचिन दोनों को साथ लेकर चलना चाहेंगे।

कांग्रेस परिवार के सबसे करीब नेताओं में शुमार अशोक गहलोत का ऐसा रूप पहली बार सामने आया है। जब उन्होंने आलाकमान को आंख दिखाई। हालांकि गहलोत ने साफ किया के वे इसमें शामिल नहीं थे और इस पर उन्होंने सोनिया से मुलाकात में खेद भी जताया। दूसरी ओर कांग्रेस में सियासी घटनाक्रम में उबाल के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समर्थकों ने यह तय कर लिया है कि चाहे सरकार गिर जाए, लेकिन दो साल पहले सरकार को संकट में डाल मानेसर में डेरा जमाने वाले विधायकों में से किसी को सीएम नहीं बनने देंगे।

मुख्यमंत्री के वफादार नेता लगातार कह रहे थे कि सीएम गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल नहीं करेंगे। वे मुख्यमंत्री ही बने रहेेंगे और गहलोत सोनिया की मुलाकात के बाद यही सामने आया। इससे एक सवाल यह भी उठ रहा है कि राजस्थान कांग्रेस में पिछले दिनों जो कुछ हुआ उसकी पटकथा कहीं गहलोत ने ही तो नहीं लिखाी थी?

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष राजेन्द्र चौधरी कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री के इशारे पर कांग्रेस के विधायकों ने पार्टी विचारधारा से हटकर कार्य किया है। यह निंदनीय है। चौधरी ने कहा कि संगठन के प्रदेश प्रभारी व पर्यवेक्षक सूचना देकर जयपुर आते हैं और उसी दिन श्राद्ध पक्ष के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मंदिर दर्शन का प्रोग्राम बनाना और संसदीय कार्य मंत्री के आवास पर विधायकों की बैठक बुलाना, यह साबित करता है कि मुख्यमंत्री के इशारे पर ही घटनाक्रम घटित हुआ ।