May 9, 2024

सोनिया गांधी का जाना और उनकी जगह राहुल गांधी का आना आज की चर्चा का सबसे बड़ा विषय है। राहुल गांधी उसी तरह कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं, जैसे अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष बने थे। देश की इन दो सबसे बड़ी पार्टियों के अध्यक्षों की योग्यता क्या है और वे कैसे चुने गए हैं, यही बताता है कि हमारे लोकतंत्र का असली हाल क्या है। नरेंद्र मोदी कहते हैं कि उन्हें कांग्रेसमुक्त भारत चाहिए तो उनसे कोई पूछे कि इसका मतलब क्या हुआ ? क्या वे विपक्षमुक्त सत्ता चाहते हैं ? क्या भारत को वे सोवियत संघ और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तरह एकदलीय लोकतंत्र बनाना चाहते है? यदि हां तो सबसे पहले उन्हें अपनी ही पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को बलि का बकरा बनाना होगा। उसे पार्टी नहीं, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाना होगा। सो, वह बनती ही जा रही है। संघ का अंकुश भी अब निरंकुश हो गया है। कांग्रेस और भाजपा में अब कितना अंतर रह गया है ? दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू नजर आते हैं। मोदी और राहुल, दोनों ही एक ही तरह की नाव में सवारी कर रहे हैं। सोनिया गांधी 19 साल तक अपनी कंपनी की लगातार मलिका बनी रहीं। उनके नामजद सीईओ मनमोहनसिंह कंपनी को चलाते रहे और अब उन्होंने अपने बेटे को उत्तराधिकारी बना दिया है। कांग्रेस मां-बेटा पार्टी है तो भाजपा आज भाई (नरेंद्र)- भाई (अमित) पार्टी है। दोनों पार्टियों की सरकारों को अफसर चलाते रहे हैं और नेतागण वोट और नोट की झांझ पीटते रहे हैं। इस बीच इन एकायामी पार्टियों ने लोक-कल्याण के कुछ उल्लेखनीय कार्य भी किए हैं लेकिन इस दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र जिस घोंघागति से आगे खिसकता रहा है, उसका एक बड़ा कारण यह भी है कि इसकी पार्टियां सचमुच लोकतांत्रिक नहीं है। यदि इन पार्टियों के नेता अपने आप को सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान समझने लगें तो जनता को सतत आपात्काल को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। यहां आशा की एक किरण यह भी है कि गुजरात के चुनाव के दौरान सर्वज्ञ नेताओं में नम्रता दिखाई पड़ी और पप्पू कहे जानेवाले नेता ने जरा परिपक्वता का परिचय दिया और खुद को एक साधारण इंसान, भूल कर सकनेवाला आदमी भी माना। दोनों नेतृत्वों का मूल चरित्र एक-जैसा ही है लेकिन अपनी भूल स्वीकार करनेवाले नेता से यह आशा बंधती है कि उसकी अल्प-पात्रता ही उसका आभूषण है याने अयोग्य वह ज्यादा ही है लेकिन वह योग्य और अनुभवी लोगों को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में नहीं फेंकेगा। उनके मार्गदर्शन का लाभ उठाएगा, जैसे उसकी दादी ने 1966 से 1975 तक उठाया था।